? प्रातः वंदन ?…..
?? प्रातः वन्दन ??
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कोमल-सा शीतल अभिनन्दन
हे नव-भोर तुम्हारा वन्दन।
मिटें सकल उर के तम-क्रंदन,
कृपा करो हे देवकी नन्दन।
राग-द्वेष के भँवर फंसा नर,
माया ठगनी करे आलिंगन।
अंतर में अब नहीं आत्मबल,
भाव चाहते करुणा-सिंचन।
मुझको अपनी शरण लगा लो,
काट सभी भव के चिर-बन्धन।
तुझमें मैं मुझमें तू निरखे,
अंग-अंग दमके जनु कुंदन।
तर जाऊँ आशीष ‘तेज’ से,
श्वास-गति का जब हो मंदन।
महक मुझे महकाए मानहु,
महक रहा हो तुलसी-चन्दन
?? सुप्रभात मित्रों ??
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