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30 Apr 2022 · 1 min read

🌺🌺व्यवहार: च परमार्थ: च🌺🌺

व्यवहार: अकुशल:।परमार्थ: कुशल: अस्ति।यस्य स्वभाव:आचरणवान,एतस्य दुर्गति: न भवितुं शक्नोति।एतस्य स्वभाव: दयालु, यं भगवान् सिंह: सर्प: आदि कीदृश:करिष्यन्ति?स्व स्वभावस्य परिमार्जनार्थं सर्वे स्वतन्त्र: समर्थ: च।स्वभाव:त्यागेन शुद्ध: भवति,भोग भोजनेन न।देवता भोग: भोगयन्ती, अतः तत्र स्वभाव:-परिमार्जन न भवितुं शक्नोति।एषः मात्र मनुष्यशरीरे एव भवितुं शक्नोति।
कामनया भविष्ये बन्धनं भवति।भोग: असक्त्या वर्तमाने बन्धनं भवति।अस्माकं अन्या: सर्वं कार्याणि भवति ।केवलं एक: निश्चयस्य न्यूनता यत् सम्प्रति वयं एक: भगवानं एव प्राप्त: करणं अस्ति।या: अत्र आगच्छन्ति, ते सर्वाधिकं पापी पुरुषा: तु न ,केवलं एक: निश्चयस्य न्यूनता।पापकृत्तमः>सुदुराचार:>सम्यग्यवसितो हि सः क्रमशः गीता-4/36,9/30/9/30

©अभिषेक: पाराशरः

Language: Sanskrit
Tag: Quotation
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