? मीत मेरे ?
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साथी तेरे लिए ही मैंने सारी दुनिया ठुकराई,
मगर कभी तुझसे ओ मितवा न की बेवफाई।
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सदा रहूंगी साथ तेरे ये कसम है मैंने खाई,
दूर न जाऊँगी मैं तुमसे नहीं हूँ मैं हरजाई।
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संग-संग तेरे रहूं हमेशा बनकर तेरी परछांई,
सदा रहे ये साथ हमारा हो न कभी रुसवाई।
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कदम-कदम साथ चलने की मैंने रीत निभाई,
न रहो कभी तुम अकेले न हो कभी तन्हाई।
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तेरी खातिर ये सारा जग तज कर हूँ मैं आई,
तेरे लिए ले लूं मैं साथी सारे जग से बुराई।
?रंजना माथुर
?अजमेर (राजस्थान)
?दिनांक 28/12 /2017
?मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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