? उठी जो तुम्हारी नजर….. ग़ज़ल?
?? ग़ज़ल ??
बह्र – 122×4
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उठी जो तुम्हारी नज़र धीरे-धीरे।
हुआ हमपे कैसा असर धीरे-धीरे।
लवों की ये सुर्खी जिया अब जलाये।
लगे जल रहा हो शज़र धीरे-धीरे।
तिरा नूर चमके गज़ब का ख़ुदारा।
न जाने क्या होगा हशर धीरे-धीरे।
मिरी जान यूँ भी न बिजली गिराओ!
कि होता नहीं है सबर धीरे-धीरे।
मिलाते न नज़रें न बदनाम होते।
न उड़ती हमारी ख़बर धीरे-धीरे।
घने-गेसुओं में उलझते गये हम।
करें जीस्त कैसे बसर धीरे-धीरे।
हमें आजमाने चले क्या ज़रूरत?
किया ‘तेज’ दिल को नज़र धीरे-धीरे!
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? तेज मथुरा