?जन्म-जाति , नारी?
मेरे प्यार का इजहार
कभी देखा नहीं किसी ने
हर लम्हें बाँधे हमने बिखर सार ।
मुद्दतो का दर्द
ढूंढती वक्त में,तोड़ती ,मोह ,भ्रम। । _ (जन्म )
तूने जो पहचान दिया ( माँ , सीता )
जाति का उत्थान किया ।
हर रिश्तो को नाम दिया ।
मौन ही सही , मेरी क्रांति ,मेरा प्यार ।
अपने कार्य रूपी पल में,अनुठी समर्पण में,
अपने ही लय में, निर्वाह ही बह जाती
_ ( जाति )
असच के आगे मौन क्यों _ (नारी ) ।
इतनी धीरता क्यों , सही
जो धरती माँ को फड़ने पर मजबूर की।
बिंड़बना हैं (नारी सशक्तिकरण ) मेरे समाज की ,देख समाज गई माँ।
कहाँ वर(देवी देवता से आज भी कोई प्रायः बेटी नहीं माँगती )जाती है।
अपने ही लय में,
असम्मान के तख्त पर, अपना हरपल
क्या मिला अपने समर्पण को अपने भावों के अर्पण कों
नारी हृदय सींच दर्द
पल – पल नारी कार्य रूप माँगे कार्य क्षेत्र ।
अस्तित्व मूल्य मांगती ,
अपनी ( विकास गाथा ) सृजनात्मक इतिहास में, अंकित नहीं हैं आज भी विश्व में नारी सम्मान समाज ।
_डॉ. सीमा कुमारी । स्वरचित १/१/८ की है । मैंने कविता की सेफ्टी के लिए नहीं लिखी है हरेक स्वरचित का तारिख कृपया माफ करना .