【24】लिखना नहीं चाहता था [ कोरोना ]
लिखना नहीं चाहता था, पर अब कोरोना पर लिखना चाहूँँ
लिखूंगा चर्म – मर्म की बातें, आदर भले मैं ना पाऊं
{1} खाते रोज मुफ्त की रोटी, दावेदार और नेता
सीमा पर होती कड़ी चौकसी, तो ना कोरोना होता
सुना था महीनों पहले चीन में,फैला था कोरोना
तभी जाग जाते तो, अब ना पड़ता हमको रोना
मद में कितने चूर हैं नेता, मन की व्यथा सुनाऊँँ
ऐसे भ्रष्ट – लापरवाह नेताओं, को ना पद पर चाहूँ
लिखना नहीं चाहता था…………
{2} खूंंन खौलता है सुनकर, ये कवि की एक विधा है
बड़े से बड़ा नेता बनने को, हर एक मूर्ख फिदा है
क्या होती है सच्ची सेवा, ये तो कोई जाने न
भृष्ट, घूसखोरी को छोड़, कोई मानवता माने न
कसम से ऐसे जल्लादों को, फांसी पर चढ़वाऊं
अंर्तमन में बहते आँँसू, किसको भला दिखाऊं
लिखना नहीं चाहता था…………