【◆कभी दिल से हाल पूछा होता◆】
कभी दिल से हाल पूछा होता
तो दिल से अपना हाल बताते हम।
ग़म के कितने काँटे चुभे हैं
हर किस्सा कह सुनाते हम।
तुम तो बस यूं ही ख़ैरियत पूछकर
गुज़र जाया करते थे,
कभी ठहर कर पूछते
तो मुफ़लिसी के अपने इक़ इक़ दिन बताते हम।
बताते अपने दिनभर की दिनचर्या,
के हर पल अपना बस रोते हुए हैं बिताते हम,
सुकूँ से सोने की नाकाम कोशिश में
सारी रात बस जागते ही रह जाते हम।
करते रहे अक्सर तुम ग़ैरों सा रवय्या,
ढा ढा कर मुझ पर ज़ुल्म ओ सितम।
जो तुमने लगाया होता मुझे अपने गले से कभी,
तो महफ़िल में आज तुमको अपना बताते हम।