【[{{◆●●●●अनजान सी कलम●●●●◆}}]】
खाक से उठे थे कुछ लफ्ज़,आज
आसमान बन गए.
एक अनजान सी कलम के खत,आज
पहचान बन गए।
इतरा रहे थे जो अपनी झूठी शान पर,उन
परिंदों के पर आज श्मशान बन गए.
जता रहे थे हम पर जो हक़ मालिक बन अपने
महल में,आज उसी महल में वो हमारे मेहमान
बन गए।