【सुख के अभाव का चिन्तन ही कष्ट】
कष्ट क्या है?
सुख के अभाव,
का चिन्तन,
बार-बार,
कारण है जो,
विनाश का,
भ्रमित करता जो,
नर को,
भिन्न-भिन्न मार्गों पर,
विकर्षण करता,
आदर्श से,
जो उपस्थित करता
कैफ़ियत, जिसमें,
कुछ भी अच्छा न लगे,
रुदन हो,
प्रतिकार मिले,
सामान्य अवगुणों का भी,
भार बढ़ जाये,
विघ्नता की बृद्धि हो,
स्थिति ऐसी,
कि त्याग भी,
सुखदाई न लगे,
प्रगाढ़ता की रिक्ति में,
भाव भी कम हो,
आधिभौतिक,
आधिदैविक,
सभी तो है,
इसके संगी,
और क्या,
क्षीण करते हैं,
मेधा, धृति, उत्साह को,
यदि मन में,
संयम हो तो,
ईश्वर भक्ति हो,
तो भाव बढ़े,
ईश्वर का,
इस दशा में,
ईश्वर और कष्ट का,
संग प्रभावी हो,
पुकार होती करुण,
भावों की बाढ़,
आये ईश्वर के प्रति,
सहनशीलता,
संयम,
स्नेह उभरेगा,
मैं, मेरा, तू,तेरा,
सभी का परिचय,
हो, कष्ट ही मैं हूँ,
मैं ही कष्ट हूँ।
©अभिषेक पाराशर??????