【कितने बसन्त अतीत के घूमते】
आँख से गिरते मोती, कहीं जम गए तो,
बीतीं हुई यादों का सैलाब टूटेगा ये,
कितने बसन्त अतीत के घूमते,
लफ्जों के हक़ का बनाते साम्राज्य,
उन्हीं लफ्जों के महल में सप्रेम,
गिरते उठते पर्दे के वे,
महीन रंगीन धागों के,
संगीत का परिचय,
जो उधार नही,
जो कहते हैं,
सीख ले,
मुझ,
से,
वही,
सामर्थ्य,
जो बजते,
अपने तल,
पर विशेष से,
एहसान मत ले,
विकारों का उड़ेलता
जिसे अज्ञान शुरुआत
में,आवरण अपने माया,
के आवेश से भटकाता लक्ष्य से,
यह वही संगीत जो बजता है,
सन्देश देता है यदि भटक गए,
कुछ नहीं पाओगे इस जगत में ये,
आँख से गिरते मोती, कहीं जम गए तो।।
©अभिषेक पाराशर????????