【अन्तिम किरण, पुकारती है सुधार करो】
जलते दिये,
रोशनी पर रोशनी,
की परतें, बहुत दूर,
पश्चाताप के अन्धेरें को,
नष्ट करती उस रोशनी की,
विलासी अन्तिम किरण,
पुकारती है सुधार करो,
ऐसे जैसे पंकज रहता है,
प्रतिष्ठा पर आँच नहीं,
टिमटिमाती रोशनी,
आधिक्य में जब हो,
उस दिये की गणना को,
अमर बना दे,
जो मिटा दे सभी,
कल्मष मेरे तेरे,
शौक़ की आँधी को,
शान्त कर दें,
उस चिन्तन को,
प्रखर कर दे जो,
अन्तःकरण को एक,
ही रंग में रंजित करें,
जिससे तू मैं हो जाऊँ,
मैं तू हो जाए,
उस पंक को समाप्त कर दे,
जो उछलती है,
व्यवहार में, कभी-कभी,
घृणा के रूप में,
द्वेष के रूप में,
संताप के रूप में,
उस अशान्ति के रूप में,
जो अशान्त करती है,
मेरे तेरे मन को,
तन को,
जो चाहता है,
अहर्निश प्रेम,
की अगाध राशि,
वह राशि जो,
जिसे हिमयोगी,
भटकने पर,
कष्ट समझता है,
मैं भी डूब जाऊँ,
उसी अनुराग में,
जिससे मेरे तेरे से,
कभी कम न हो सके,
प्रेम, सतव्यवहार,ज्ञान,
आनन्द, परमानन्द,
ब्रह्मानन्द की,
परमोत्कर्ष,
सर्वश्रेष्ठ,
भावना।।
©अभिषेक पाराशर