✴️✳️हर्ज़ नहीं है मुख़्तसर मुलाकात पर✳️✴️
##मेरे शब्द ही विश्वास थे##
##मैंने स्वयं अपने किये का अपराध बोध किया था##
##यदि मैं सत्य हूँ,निशीथ का समय है, हे ईश्वर सब अशुभ ही देना##
##मैं कभी न चरित्रहीन था, न हूँ, न रहूँगा,वाहियात भी नहीं##
##तुम्हें मेरा ईश्वर दण्ड देगा##
##रात्रि 12:07 मिनट पर लिखा गया##
##वही सब कृत्य होंगे, यहीं से,उनसे बचना##
##अब कोई सफाई नहीं##
हर्ज़ नहीं है मुख़्तसर मुलाकात पर,
हर्ज़ नहीं है मुख़्तसर मुलाकात पर,
आसमाँ कब झुके?
क्यों फूल मुरझायेंगे?
गीत बन तो गए,
गाएँ किस राग में,
एतराज़ नहीं है आपके साथ पर,
हर्ज़ नहीं है मुख़्तसर मुलाकात पर।।1।।
वो रूप धरते गए,
हम भी सम्भलते रहे,
राह थी वह कठिन,
फिर भी चलते गए,
रीझना क्यों हुआ?उनकी किस बात पर,
हर्ज़ नहीं है मुख़्तसर मुलाकात पर।।2।।
शान्त बनकर जिएँ,
राह तक कर जिएँ,
देह थक क्यों गई,
साँस रुक सी गई,
कहाँ,कब वो मिलेंगे?किस राह पर,
हर्ज़ नहीं है मुख़्तसर मुलाकात पर।।3।।
उनकी तामील पर,
अब बस होंगी बसर,
हक़ को कहने वाले,
हक़ का साथ कर,
जिन्दगी अब टिकी है शह-मात पर,
हर्ज़ नहीं है मुख़्तसर मुलाकात पर।।4।।
©®अभिषेक पाराशर:
मुख़्तसर-संक्षिप्त
हर्ज़-नुकसान
एतराज़-ऑब्जेक्शन