✍️ देखते रह गये..!✍️
✍️ देखते रह गये..!✍️
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हम दूर खड़े होकर बस वो मंझर देखते रह गये ।
अपने सीने पे चले वक़्त के खंज़र देखते रह गये ।।
मौसम के गहरे ज़ख्म में खामोश है खेत खलियाँ ।
कड़ी धूप के सदमे में ये ज़मी बंझर देखते रह गये ।।
ये ठंडी छाँव के दरख़्तों का क़त्ले-ए-आम हुवा है ।
ग़मज़दा परिंदे बिखरता अपना घर देखते रह गये ।।
अपने तल्ख़ी जेहन से हम खुद पे ही अब खफ़ा है ।
अपनी खुदी पे इतराकर ये लुटा दर देखते रह गये ।।
किसी अलिम की नेक राह तो चल ना पाये कभी ।
अपने क़दमो के ये गुमराह आसार देखते रह गये ।।
बिन पिये भी लिखते है दर्द-ए-मैक़दे के मिज़ाज ।
हमारे तहरीर का प्यालों पे ये असर देखते रह गये ।।
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✍️”अशांत”शेखर✍️
20/07/2022
*ग़मज़दा-शोकग्रस्त, दुःखी
*तल्ख़ी-चिड़चिड़ापन,उग्रता
*खुदी- गर्व,घमंड
*अलीम-महाज्ञानी,सर्वज्ञ
*गुमराह- भटका हुवा
*आसार- पदचिन्ह,लक्षण
*तहरीर- लिखावट