✍️ कलम हूं ✍️
( गीत )
🌹शीर्षक : कलम हूं 🌹
कलम हूं अपने कर्म-जगत में दिखती जाऊंगी।
जैसा कर्म करेगा मानव लिखती जाऊंगी।।
माया अपने माया-जाल से
पल में मनु को भ्रमित है करती।
पग विचलित हो जाते इनके
पर न कभी तनिक है डरती
चल-चल के कोरे पन्नों पर छपती जाऊंगी।
सत्पथ ज्यों छोड़ेगा मानव लिखती जाऊंगी।।
सृष्टिकर्ता सृष्टि करके
सुंदर सकल शरीर दिया है
सोच-समझ के सामर्थ्य का
वागीश्वरि से पेय मिला है
लेकर जप-तप की माला मैं जपती जाऊंगी।
दुष्पथ जो जाएगा मानव लिखती जाऊंगी।।
इंसां जान- बूझकर के भी
ना जाने क्यों गलती करते
देखे जग-पालक इन सबके
कर्मों को फिर नहीं ये डरते
तज कुत्सित हर काम
कान में भरती जाऊंगी।
दुर्गति ज्यों जाएगा मानव
लिखती जाऊंगी।।
यदि कर मात-पिता की सेवा
मृत्युलोक में नाम किया तूं
दीनों के दुःख हर्ता बनकर
स्वर्गलोक में जगह लिया तूं
“रागी” तेरी करनी-कथनी कथती जाऊंगी।
ज्यों सद्गति पाएगा मानव लिखती जाऊंगी।।
🙏कवि🙏
राधेश्याम “रागी”
कुशीनगर उत्तर प्रदेश
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