✍️हम वतनपरस्त जागते रहे..✍️
✍️हम वतनपरस्त जागते रहे..✍️
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मुश्किलो से जितकर कोई सिकंदर नहीं होता?
तकलीफों में जो मुँह फेरे वो जिगर नहीं होता
कितने हौसले लेकर ये नदियां बहते रहती है
दरिया से दरिया मिलके भी समंदर नहीं होता
कितने तूफाँ उबलते है तन्हा तन्हा लहरों में..
यूँ नाकाम कोशिशों से कोई बवंडर नहीं होता
उन किताबो से पहले इँसा ने इँसा पढ़ा होता
फिर कोई इँसा के बर्बादी का मंझर नहीं होता
हर ज्ञान के इम्तिहाँ में द्रोणाचार्य कहते रहेंगे..
बिना अगूंठे के एकलव्य श्रेष्ठ धनुर्धर नहीं होता
यहाँ शतरंज के है षडयंत्र प्यादे खेल में है धुत्त…
ये अफीम का नशा है वैसे तो जहर नही होता
नींद में लूटने से तो अच्छा है के हम जागते रहे..
कोई वतनपरस्त फिर गांधी अंबेडकर नहीं होता
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©✍️”अशांत”शेखर✍️
28/07/2022