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25 Jul 2022 · 1 min read

✍️सूफ़ियाना जिंदगी✍️

✍️सूफ़ियाना जिंदगी✍️
……………………………………………………………………//
अपने चेहरे पे सारी दुनिया का क्यूँ तमाशा रहता है
ये क्या ज़िल्लत है बेरहम पराया दर्द हमेशा रहता है

रोज इश्तियाक सुबह उदासी की शाम में ढलती है
जिस दर उजाले है उस हाथ कोई करिश्मा रहता है

उलझनों के सहरा में वक़्त ही खुद से गुमगश्ता है
अब इस तपती रेत में सारा जिस्म झुलसा रहता है

कोई काफ़िला साथ नहीं मुसाफिरी की जिंदगी है
इस अंजानी भीड़ से मेरा अक़्स भी परेशां रहता है

‘अशांत’ सूफ़ियाना जिंदगी जीने के कुछ रम्ज़ है
एक फ़कीरी दिल को इंसानियत का नशा रहता है
……………………………………………………………………//
✍️”अशांत”शेखर✍️
25/07/2022

3 Likes · 7 Comments · 361 Views
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