✍️समझ के परे है दुनियादारी✍️
✍️समझ के परे है दुनियादारी✍️
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मेरे समझ के परे ये दुनियादारी है ।
दुनिया में कहाँ अब समझदारी है ।।
शर्तो पे चलती है मोहब्बत की यारी
खाली जेबो पे इश्क पड़ता भारी है ।।
बाहर से मासूम लगते है कुछ चेहरे
झाँक के देखा अंदर तो मक्कारी है ।।
रिश्तों की आस्थाएं बनावटी हो गई
अब हर जेहन को लगी ये बीमारी है ।।
जरासी खामोशी आँखों में उभर आये
तो परायी शक्ले दिखाती होशियारी है।।
ये रुकावटे ही तो वक़्त से मिलाती है
जिंदगी को तो सिर्फ रफ़्तार प्यारी है ।।
पत्थरों में कहाँ इँसानो सा छल कपट..
बने है जरिया ये इँसा की कलाकारी है ।।
‘अशांत’ढूँढता है जहाँ में तू ईमानदारी
दिल की भी कहाँ खुद से वफ़ादारी है ।।
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©✍️’अशांत’शेखर✍️
19/08/2022