✍️लकीरे
हम खुद कितने झूठे
उम्मीदों पे जीते है
‘बंद मुठ्ठी लाख की’
यही बात कहते है
जब भी मुठ्ठी खुली
तो खाली लकीरे थी
और इन लकीरों को
हम तक़दीर कहते है
………………………………………………//
©✍️- ‘अशांत’ शेखर
15/09/2022
हम खुद कितने झूठे
उम्मीदों पे जीते है
‘बंद मुठ्ठी लाख की’
यही बात कहते है
जब भी मुठ्ठी खुली
तो खाली लकीरे थी
और इन लकीरों को
हम तक़दीर कहते है
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©✍️- ‘अशांत’ शेखर
15/09/2022