✍️ये अंधेरा मेरे रूह में निखर गया
कुछ पल के लिए जरासा ठहर गया
ये वक़्त मुझे यूँही अनदेखा कर गया
वो साथ चलते रहा तन्हा मुसलसल..
जब काफ़िला सफर में बिखर गया
चलने से सिर्फ ये रास्ते ही तय हुए..
सर-ए-मंझिलो से खाली गुजर गया
अरमां तो रोज सुबह जग जाते है पर..
एक ख़्वाब जीने में कई दफा मर गया
रोशनी की जगमगाहट थी चारो ओर..
मगर ये अंधेरा मेरे रूह में निखर गया
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©✍️’अशांत’ शेखर
24/10/2022