✍️मुझे तेरी तलाश नहीं✍️
✍️मुझे तेरी तलाश नहीं✍️
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कैसे तमाशबीन बैठे है हुजरे में के होश नहीं
क़द्रदान खड़े है भरे मुजरे में वो बे-होश नहीं
ऐसे बाँधा है महफ़िल में समां के झूम रहे सब
कौन सुनेगा ख़ामोशी की चीखे कोई रोष नहीं
ये तंग कूचे ये शहर की बस्तियाँ वीरानी सी है
फ़ित्ना जेहन है यहाँ के शोर में,कोई जोश नहीं
मैंने आँखों से देखे तेरे शहर का सूरत-ए- हाल
तेरे शहर में अंजान हूँ पर मै खानाबदोश नहीं
सैर पे क्या गया शहर में चर्चा हुई मेरे मौत की..
अभी ज़िंदा है मेरे एहसास मैं कोई लाश नहीं
इतने ज़ख्म है खाएं तेरी मीठी जुबाँ से हमने
तू मेरे रूह में उतर गया है मुझे तेरी तलाश नहीं
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✍️”अशांत”शेखर✍️
17/07/2022
*हुजरा-थियेटर,नाट्यशाला
*रोष- गुस्सा
*फ़ित्ना-विद्रोह,बगावत
*ख़ानाबदोश-जिसका ठौर-ठिकाना न हो