✍️प्रकृति के नियम✍️
✍️प्रकृति के नियम✍️
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ये कैसी
विपदा है
मैं, मैं नहीं…
तू, तू नहीं…
अब हम
कही नहीं…
मैं, तू नहीं…
तू, मैं नहीं…
विश्वास नहीं,
तो खोजले
अपने आपको
अपने भीतर…
मन के सागर में
भरा है जल,
क्या कभी
इसका
मिला है तल..?
इसकी तलाश में
गुमनाम है तू..
यदि…
कभी मिलेगा भी
अपने आपसे
फिर वो तू नहीं…
मैं उम्रदराज़
समय के पहिये
के साथ बदला हूँ,
अब खुद से
कभी मिलु मैं,तो
फिर वो मैं नहीं…
प्रकृति पर
कोई ना भारी है ।
बदलाव के नियम
सभी पे जारी है ।
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✍️”अशांत”शेखर✍️
20/06/2022