✍️जन्नतो की तालिब है..!✍️
✍️जन्नतो की तालिब है..!✍️
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हर दुवां में खुदा से ही जन्नतो की तालिब है..!
हर इँसा को जगह मिले क्या ये मुनासिब है ?
अगर पाप धुल ही गए गंगा में तो डर क्यूँ है ?
सारे खुदाओं को परेशां करना ये तो फ़रेब है
हर इबादत में माँगता है सिर्फ खुद के लिये..
थोड़ी ख़ुशी भर किसी झोली में जो वाज़िब है
पाँव तेरे वही रुकते जहा झूठी शक़्ल के रास्ते..
कभी मुडकर तो देख सफर तेरा उस जानिब है
साहिल की रेत पे लिखे मेरे ये अल्फ़ाज़ फानी है
हम अपने ही कलम के दर्द में बहते हुए अदीब है
“अशांत”उलझने है ओरो के अश्क़ संभालने की
ये तन्हा दिल अपने आँखों के ख़ुशी का रक़ीब है
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©✍️”अशांत”शेखर✍️
30/07/2022