✍️खून-ए-इंक़िलाब नहीं✍️
✍️खून-ए-इंक़िलाब नहीं✍️
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ये ख़ुलूस है के अब मै उनके क़रीब नहीं
जबाँ पे था सच फिर ये बात अज़ीब नहीं
पशेमाँ हुए जब आँखो में भर लिया तुम्हे..
सज़दे में गझल लिखता पर मैं अदीब नहीं
शराफत ओढ़कर चली है मुश्ताक़ रंजिशें
आँधियों से कह दो अब हम भी नज़ीब नहीं
कुछ उम्र साथ गुजरी है अंधेरो से अँधेरे तक
एक पल रोशनी को तरसे है वो भी नसीब नहीं
उसकी खामोश तहरीर में जोश-ए-जुनूँ था
रूह में आग जलाने को कोई आफ़ताब नहीं
अब कहा हौसले भगत के हवाँ में गूँजते है
अब जमी हुई नब्ज में खून-ए-इंक़िलाब नहीं
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✍️”अशांत”शेखर✍️
12/07/2022
*ख़ुलूस-लगाव सच्चाई
*पशेमाँ-शर्मिंदा,लज्जित
*अदीब- साहित्यकार
*नज़ीब- शरीफ
*मुश्ताक़-ईच्छा,आकांशी
*तहरीर-लिखावट
*आफ़ताब -सूरज