✍️किसीको पिघलते देखा है..?✍️
✍️किसीको पिघलते देखा है..?✍️
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इन आँखों ने कही मौसमो को बदलते देखा है
हलकी बारिशों में कुछ घरो को उजड़ते देखा है
दुनिया का बदलाव हर किसी को मंजूर होता है
हमने रुख जो मोड़ा हालात को बिगड़ते देखा है
गर हम कसूरवार है तो वो कहाँ दूध के धुले थे
पाप धुलाने के लिए उन्हें गंगा में नहाते देखा है
जुबाँ ठंडी पड़ी कही से कोई आवाज़ नहीं उठती
बेजान से रूह में खून के कतरे को ठहरते देखा है
इतिहास के इंकलाबी पन्ने किताबो से फट रहे है
अब जोशीले बातों से किसीको पिघलते देखा है..?
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©✍️’अशांत’ शेखर✍️
07/09/2022