✍️कल..आज..कल..✍️
✍️कल..आज..कल..✍️
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मेरे आनेवाले ‘कल’को इस वक़्त ने क़ैद किया है ।
मैंने अपने ‘आज’ को ही मुसलसल ज़ैद किया है ।।
मेरा गुजरा ‘कल’ हाशिये में कभी उतरा ही नहीं ।
अपनी तहरीर से उसे मुक्कमल आझाद किया है ।।
वो ‘कल’मेरी जिंदगी बदलने में मयस्सर ही नही ।
झूठी उम्मीदें छोड़ मैंने ‘आज’ को आबाद किया है ।।
धीमा धीमा चल रहा था वो हर पड़ाव मेरी ओर..।
जैसे समय ने अपनी रफ़्तार को ही बर्बाद किया है ।।
जो कल गुजर गया फिर नया कल लौटा ही नहीं ।
मैंने कल के ख्वाईशो को ‘आज’ही में शाद किया है ।।
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✍️”अशांत”शेखर✍️
19/07/2022
*मुसलसल-निरंतर,सतत
*ज़ैद-विकास, बहुतायत
*हाशिये-पुस्तक का चारो ओर का साधा हिस्सा,नोट,फुट
*मुक़म्मल-संपूर्ण,समाप्त
*मयस्सर-प्राप्त,उपलब्ध
*शाद-प्रसन्न,खुश