✍️एक ख्वाइश बसे समझो वो नसीब है
खुद बिना समझे जाहिलों को हम
समझा रहे, ये शौक बड़ा अजीब है
तहरीर दर्द-ए दिल की खुशगवार
को सुना रहे,हम भी कैसे अदीब है
यहाँ पढ़ी लिखी इंसानी होशियारी
खुद के जुबाँ को सिमटकर बैठी है
चार किताबें पढ़ने में जो दिलचस्प
नहीं थे, दुनिया के लिए वो नजीब है
वैसे तो सच को क़ीमत मिलती नहीं
झूठ यहाँ सस्ते में यूँही बिकता नहीं
मगर सच्चाई का वो खरीददार निकला
दाम लगानेवाला सौदागर मेरा हबीब है
हम बदनसीब नागवार को सुनते है
यूँही जीने के रोज कुछ ख़्वाब बुनते है
इस जद्दोजहद के दौर में आँखों में
एक ख्वाइश बसे समझो वो नसीब है
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©✍️’अशांत’शेखर✍️
13/08/2022