✍️आकाशदीप
मिट्टी का दिया
अँधेरे में मायुस बैठा है
विद्युत की प्रकाश
लड़ियाँ ऊँची ऊँची
गगनचुम्बी इमारतों में
जगमगा रही है
धीरे धीरे दिये की
छोटी सी इक लौ
विलुप्त हो रही है
मिट्टी को दिये के
आकार में बदलने वाले
हाथों में थकावट है
झुर्रियों में मुरझाया वो नक़्श
अंधेरो से लिपटा पड़ा है
उन्ही हाथों ने हमारे
कई पूर्वजो के लिये
शीतल जल के
माटी से मटके,थालियां,
और भोजन के बर्तन बनाये है
अब इस गोलमटोल
दुनिया ने अपने सभ्यता
को भी बदल दिया है
मगर परंपरायें चकाचौन्ध
रोशनी में उत्सव मना रही है
आधुनिक मॉल के बाजारों
में रुई की बातियाँ रंगों से
सजे दीपक यहाँ सेठ बेच रहे है
और संस्कृती की पहचान को
जिंदा रखनेवाले हजारो
पेट भूख से तड़प रहे है
मिट्टी के इंसानी दुनिया में
आकाशदीप गगन में ऊँचे लहरा रहे है….!
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©✍️’अशांत’ शेखर
26/10/2022