✍️अच्छे दिन✍️
✍️अच्छे दिन✍️
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हमने कहाँ मांगे थे बेबस
लाचारी के ये अच्छे दिन
लौटा दो हमें न कड़वे ना
मिठे वो पुराने बीते दिन
चूल्हें की बुझती लौ और
टिमटिमाती ये रोशनी
अब घर के बिजली की
बर्दाश्त नहीं होती रौनक
लौटा दो गमे शानो शौकत
दो वक़्त के थाली की दौलत
कोई झूठी आस अब ना दिखाओ
अपने मन की बात ना सिखाओ
खूब दुनिया में बोलबाला हुँवा है
यहाँ लोगो का निवाला छिन रहा है
रहने दो अब दर दर की ये फ़कीरी
उठा दो अब हर घर की ये बेकारी
तुम एक बाबा हो बड़े ही चमत्कारी
देश पर आफ़त है बढ़ रही मक्कारी।
महंगाई की मुँह दबाके मार पड़ रही है
अब क़यामत प्रजा के द्वार पे खड़ी है
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✍️”अशांत”शेखर✍️
15/07/2022