♤⛳मातृभाषा हिन्दी हो⛳♤
‘सरल’ है,’सुलभ’ है, मेरे “हिन्द” की भाषा,
कटुता से परे है, हमारी “हिंदी” मातृ-भाषा।
सम्पूर्ण है,सब 10 रसों का, संगम है समाया,
मिलकर सब ने इसे 49 में, राजभाषा है बनाया।
अलंकृत है,सुंदर अलंकारों से, मातृभाषा हिंदी,
एक भाषा है यह, चाहे पंजाबी हो, या सिंधी।
देवभाषा से प्रकटी, महान आर्यावर्त की मातृभाषा,
धड़कन में बसती, है हर भारतीय की अभिलाषा।
सुंदर, सहज है, बोलने से “मधुर वाणी” होती,
सब अपनाते दिल से, तो विश्व शिखर पर होती।
छंद,सवैया और दोहे, रोले भी मनभावन लगते,
सरल,सहज हिंदी से, सब दु:ख छोटे हैं लगते।
एकता पथ पर चल, हिंदी को सारे विश्व में लाओ,
भारत को उन्नत बनाकर, फिर ‘विश्व गुरु’ है बनाओ।
क्यों क्षीण कर रहे तुम, आर्यों की मातृभूमि को,
करोड़ों ने लहू से सींचा है, पवित्र भारत भूमि को।
तुम क्यों लड़ते हो, “जातिवाद” के नाम पर,
एक बनो,एक ताकत बनो, गर्व करो स्व-राष्ट्र पर।
जातिवाद को रोड़े मत लाओ, संस्कृति के आगे,
राजभाषा को ढाल बना, फिर भरतखंड करो आगे।
पहचानो अपनी पावन धरा, और वीरों की भूमि को,
सौराष्ट्र के लिए खुशी से, कैसे अपनाया सूली को।
आज क्यों अंग्रेजी के आगे, तुम हिंदी को झुका रहे,
सभ्यता को भूल, क्यों विदेशी संस्कृति अपना रहे।
मानता हूँ,आज “दौर” है, अंग्रेजी के संसार का,
पर मातृभाषा को भूल, गला ना घोटो अपने संस्कृति का।
वक्त है,अब आ गया, खुद को पहचानने का,
घर-घर हो राष्ट्रभक्त, अपनी इच्छाशक्ति जानने का।
विश्व स्तर पर गूँजे, हिन्दी की किलकारियां,
आसमां भी गुंजित हो, चर्चित हो हिंदी की कहानियां।
जन-जन समझे,पहचाने अब, मुहावरे,लोकोक्तियां,
हर घर जागरूक हो, सुने हिंदी की निर्मल कहानियां।
तुम बदलते वक्त के साथ, खुद को हमेशा बदलो,
पर सभ्यता छोड़ स्वदेशी से, कभी ना विदेशी में बदलो।
धरा के कण-कण में गूँजे, बस हिंदी के ही स्वर,
गर्व करो हिंदी पर, किसी को न दो खंडन का अवसर।
क्षेत्र से निकल, तुम अपने व्यक्तित्व को निखारो,
हिंदी को विश्व भाषा बना, तुम अपना कर्तव्य निभाओ।
मातृभाषा हिंदी है, हमारे भारत-वर्ष की धड़कन,
करो कुछ कमाल ऐसा, बन जाए विश्व की धड़कन।
महान है,मातृभाषा हिंदी, जो रसों से परिपूर्ण है,
अलंकार,चार-चाँद लगाते, मुहावरे करते संपूर्ण हैं।
लेखक/कवि✍️✍️ ~
सचिन लोधी “SPK”
केरपानी(नर्मदा-घाट)
नरसिंहपुर, मध्य प्रदेश – 487001