★आखिरी पंक्ति ★
ये आखिरी पंक्ति है उसकी जो दुनिया चलाएगा वही फल उगायेगा वही फसल उगायेगा कभी रखेगा बैलों के कंधों पे वो हल अपना कभी उसी हल को वो मिट्टी में चलाएगा और उसी मिट्टी से निकलेंगी लहलहाती हुई फसलें उन्हें देखकर वो कई दफा मुस्कुराएगा और कभी देखेगा शायद वो मौसम की भी मनमर्जी कभी फसलें गवायेगा कभी खुद को गवायेगा और किसानों के जज्बातों को हल्के में ना लेना तुम वही अर्थ चलाएगा वही व्यवस्था चलाएगा।।
★IPS KAMAL THAKUR★