●● एक_कागज़_का_टुकड़ा ●●
#एक_कागज़_का_टुकड़ा
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क्या कहूँ कैसे कहूँ माँ पिताजी से
शायद मेरी ख़ुशी के लिए मान जायें
हाँ ……….
आज में मेरे दिल की बात बता देता हूँ
इतना सोचकर पापा के साथ
सुबह सुबह उनके साथ टहलने चला गया
में कुछ मोन सा था उस दिन
पापा पूँछे कैसे उदास उदास हो
थोड़ी हिम्मत से …..
पापा मुझे आप से कुछ कहना है
आप ने बचपन से लेकर आज तक
मुझे हर वो ख़ुशी देने की कोशिश की
जिस की मैंने चाहा …..
इतना ही कहा था मैंने उसी पल
मेरी आँखों में अश्रु बहने लगे थे
कंठ अश्रुओं से भर आया
कुछ बोल नही पा रहा था मैं …..
कुछ शब्द नही थे मेरे पास
पापा पूँछने लगे क्या हुआ ?
कुछ बोल रहा था तूं
मैंने मेरी आँखों को पोछते हुए
इक हँसी में सबकुछ टालते हुए
कुछ नही पापा बस यूँ ही
फिर भी कुछ कहना है बेटा तो बोल दो
मैं चुप सा हो गया …….
नही कह पाया में कुछ भी उस दिन
कुछ भी मेँ
समाज परिवार सभी जगह
पापा की कितनी रेस्पेक्ट है सब लोग क्या कहेंगे .. ?
किस किस का मुह रोकूँगा मेँ
कुछ माह बाद …………
वह कागज का टुकड़ा जिसमे लिख रखा था
में मेरी पसंद से शादी करना चाहता हूँ …..?
जो मैने ही मेरी डायरी से अलग करके कही रखकर
भूल गया था मैं बहुत ढूंढा
वो मुझे भी नही मिला आखिर ….
वह कागज का टुकड़ा पापा के हाथ लग गया
में उसे उनके हाथ में देखकर
कुछ डर सा गया था ……..
उनके सामने कुछ कह तो न सका
लेकिन ………..
पापा इतना कहकर चले गए की
यह कहना चाहता था तूं मुझे उस दिन …….. ???
उस कागज के टुकड़े ने
मेरी जिंदगी की सारी हक़ीक़त एक पल में
बयाँ कर दी………?
■■■ नितिन शर्मा ■■■
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