{{◆ मेरा इश्क़ ◆}}
आज फिर थोड़ा सा बेईमान हुआ है मेरा इश्क़
दूबारा टूट के फिर बिखरा हुआ है मेरा इश्क़
रोज़ लगती हूँ फ़रियाद उसके दरबार में फिर भी
मेरे हिस्से की चाहत बाटने पे आमादा हुआ है मेरा इश्क़
सपनो की कलाई को थाम के जो अब्र तक ले गया
आज तन्हा मुझे कब्र करने की ज़िद पे अड़ा है मेरा इश्क़
कहीं फिर से मेरा दिल बेआबरु न हो जाए
इसी खौफ से ग़मज़दा हुआ है मेरा इश्क़
दुआओ से एक अरमानों का एक घरौंदा बनाया था
एक हल्की तकरार की बारिश भी सह न पाया मेरा इश्क़
दिल दे कर, हर लम्हा मैं उससे हरी हूँ
कदमो में गिर के भी मेरा न हुआ है मेरा इश्क़
ज़र्रे से जिसे मैंने चाहत में अपने आफ़ताब बनाया
आज जलाने को मुझे, आग लिए फिरता है मेरा इश्क़
बेकसूर हो कर हर ज़ुल्म की सज़ा काट रहे है हम
रोज़ नया अदालत लगा देता है मेरा इश्क़
तेरी चाहत में ही पत्थर से हम मोम हुए थे
आज वही पत्थर मुझपे मार रहा है मेरा इश्क़