{{ ◆ बात ही कुछ और है ◆ }}
मेरी तन्हा शामों में ,सिर्फ तेरी यादों को शामिल किया ,
एक तेरी आरज़ू के बाद , न इस दिल की आरज़ू कुछ और है,,
हज़ारों दुश्मन होते हैं , इश्क़ और रंज की दुनिया में ,
तू गर साथ हो तो , इससे लड़ने का मज़ा ही कुछ और है ,,
हमने तो कभी हार माना ही नही, करके बगावत ज़माने से,
जीत की असली खुशी तो, तेरे साथ कुछ और है ,,
यू तो काट रहे है दिन हम , अपने झूठी हँसी हँसते – हँसते,
तुम पास होते तो रोने का भी , लुफ्त कुछ और हैं ,,
भीड़ बहुत हैं यहाँ , जो तू थाम ले हाँथ मेरा तो ,
तेरे साथ सफर में , खोने की बात ही कुछ और हैं ,,
मेरे सूखे होंठो के पन्नो पे ,जब तुम कुछ लिखते हो ,
आँखों में जो सैलाब उभरता है, उसका मंज़र कुछ और है ,