{{◆ बवंडर ◆}}
कोई अपना भी है यहाँ, ये भम्र सा लगता है
फरेब इतना है कि सांस लेने भी डर सा लगता है
सूखे पत्तों की तरह, अपनो को साख से बिछड़ते देखा
पुरानी यादों की डायरी अब, कैलेंडर सा लगता है
ज़िन्दगी की सारी रौनक, एक शख्स उजाड़ के ले गया
बसती थी तबस्सुम जिस चेहरे पे, अब वो खण्डर सा लगता है
हर जलजले से टकराने को तैयार है, ये दिल नासमझ
उम्र कच्ची ही सही पर, वो बच्चा निडर सा लगता है
अंदर बहुत खामोशी ओढ़े रहते है, ये टूटे दिल वाले
मुस्कान देख सहम गए, ज़हन में कोई शांत बवंडर सा लगता है