जिंदगी.... कितनी ...आसान.... होती
बेनाम जिन्दगी थी फिर क्यूँ नाम दे दिया।
*प्रकृति के हम हैं मित्र*
यूं ही हमारी दोस्ती का सिलसिला रहे।
ये काबा ये काशी हरम देखते हैं
सबने मिलकर जिसको आगे बढ़ाया,
मिल जाएँगे कई सिकंदर कलंदर इस ज़माने में मगर,
जगे युवा-उर तब ही बदले दुश्चिंतनमयरूप ह्रास का
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
वो मुझे अपना पहला प्रेम बताती है।
*माँ दुर्गा का प्रथम स्वरूप - शैलपुत्री*
57...Mut qaarib musamman mahzuuf
जमी से आसमा तक तेरी छांव रहे,
Anamika Tiwari 'annpurna '
*जीवन उसका ही धन्य कहो, जो गीत देश के गाता है (राधेश्यामी छं