◆{{◆ मैं एक नदी चंचल ◆}}◆
तुम एक सागर से गहरे, मैं एक नदी चंचल,
तुझे देख कर तुझमे ही समाने को मैं बेकल,
काली अंधेरी सिया रात सी तुम्हारी बाँहें,
मैं चांद सी, तेरी आग़ोश में छुपने को जाती मचल,
आकाश सा फैला तेरा वज़ूद सारा मेरे अक्स पर,
हवा बन मैं तेरे वज़ूद में समा जाऊ, और छुपा ले तुझे मेरा आँचल,
तुम मन्नत के धागे सा अटूट विस्वास की डोर,
हर मंदिर, दरगाह में बंध जाऊ,मैं वो दुआ निश्छल,
तुम दीप में प्रज्वलित होते उज्जवल प्रकाश से,
मैं तेरे दीप की बाती सी, जिससे सारा लौं सजल,