◆◆ छाँव ◆◆
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छाँव, देखी है सभी ने,
होती है, सांवली सी,
अक्सर धूप में,
दिख जाती है,साथ सभी के,
कुछ छोटी,कुछ बड़ी,
टेढ़ी मेढ़ी और कुछ गोल सी,
वो छाँव जो देखी है, सभी ने ।
पेड़ो के नीचे अक्सर,
पसीना सुखाने को,
थकान मिटाने को,
ठंडी हवा में,अंगड़ाई लेने को,
हम हमेशा बैठ जाते हैं,
वो वही श्याम सी छाँव है,
जिसे देख उमंग आती है सभी में ।
पर अब कंक्रीट की दुनिया में,
किस पत्थर की छांव तले,
कौन जुटे, कौन रुके,
वो ठंड कहां, क्या हवा चले,
इस जलती तपती ज़मीन पर,
वो घास कहां, आराम कहां,
वो पेड़ कहां से लाओगे,
वो छाँव कहाँ से पाओगे,
जिसे देखा था कभी,हम सभी ने ।
©ऋषि सिंह “गूंज”