◆◆【【{{जीवन संघर्ष}}】】◆◆
चल मुट्ठी को ताड़ कर
जीवन संघर्ष को फाड़ कर,
मंजिल तो बूंद सा पानी है
पी ले आंखों में अंगार भर।।
रेत रेतीली क्या डरना ,
कांटो के ज़ख़्म हस के सहना.
गुलाब की खुश्बू आती है,
जब मेहनत बरसे बन के सोना।।
अमीरी गरीबी नही कोई फिक्र,
हवा भी करेगी तेरा ज़िक्र.
लक्ष्य तो ओझल रहेगा ही,
तू तीर पे उतार अपना हुनर।।
धूप छाँव सब छलावा है,
हुस्न शबाब मोह माया है,
तारीखें भी उसे याद करें,
जिसने खुद को जगाया है।
पल पल वक़्त गुजर रहा
सांसों का दीया बुझ रहा,
कब तक रोयेगी शमशीर यूं आराम कर,
ये नसों का खून बोल रहा।।
वही तो ज़िन्दगी जियेगा,
जो खारा समंदर पियेगा.
क्यों करता है दुनिया की फिक्र,
शहद में तो डंक भरा,
किस किस की जुबान को सियेगा।।
बादल की दहाड़ से क्या डरना,
आग के ताप से क्या डरना.
तू खुद बरसेगा शान से
इस सतरंज की चाल से क्या डरना।
ये दुनिया खेल तमाशा है,
रंग भिरंगी भाषा है.
जीतेगा बाज़ी वही यहाँ,
जिसके मन में न हताशा है।
क्या लेना सहारा किसी का,
ये वक़्त आवारा न हुआ किसी का,
यहाँ तो खुद ही वार करना है,
क्या करना कंधा किसी का।।
मुसीबत से टकराजा तू,
हर चुनौती को खाजा तू,
चक्रव्यूह जो फैले राहों में,
इन सब से पार पा जा तू।।
मिट्टी से मिट्टी तो होना है,
खुद को मेहनत से धोना है.
नही तेरी हस्ती कोई बेअसर,
तुझमें भी तो कोई बात होना है।।
ये लोग ताली बजायेंगे,
वो फूल बहार के जब आएंगे.
एक बार सफल जब तू होगा,
गूंगे भी शोर मचाएंगे।
ज़ख्मों की क्या परवाह,
वीरों की रक्षा करता है खुदा.
बुज़दिल तो पल भर में हो जाते मिट्टी,
जो देता हर संघर्ष को मात
उनके लिए बनता ज़हर भी दवा।।
हर संघर्ष से पार पाना है,
आज वक़्त को पाठ पढ़ाना है.
हस्ते जो अब नाकामी पे,
कल उनको मुँह चिढाना है।।
हम भी तो ज़ोर लगाएंगे
पत्थर से अब टकराएंगे.
होता क्या है तूफानों में ज़ोर,
अब हम ज़माने को बताएंगे।।
बिन नाम के जीना राख है
यहाँ बोलती रुतबे की साख है
क्या सोच रहा अमन गुमनामी में,
तेरी कलम में भी तो इंक़लाब है
तेरी कलम में भी तो इंक़लाब है।।