◆◆【【{{अस्तित्व}}】】◆◆
◆◆【【{{अस्तित्व}}】】◆◆
खो रहा मेरे देश का अस्तित्व अंधकार में,
बिन बात के बन रहे मुद्दे बेकार में.
हर कोई फैला रहा नफरत अधर्मी बनकर,
सबको अपनी रोटी जो कमानी धर्म के बाजार में।
नही देख रहा कोई गरीब की लाचारी,
नंगे पांव जिनको खिंच रही किस्मत बेकारी.
सड़को रेलगाड़ियों में दम तोड़ रहे भूखे बच्चे,
सब दिखावे की है इन सरकारों की तैयारी।
बरसों से गरीबों का वही हाल है,
उतार रही जिनकी अफसरशाही खाल है.
खाने के नाम पर मिलती हैं लाठियां,
आज भी कैसे पेट भरूँ वही सवाल है।
आँखों पर पट्टी बांध दिखाये जाते उजाले,
खून भर भर के रोते है नंगे पैरों के छाले.
अब भी लड़ रहे नेता खुद की थपथपाई में,
किसको वक़्त है कौन मजदूर को संभाले।
मदद करना भी अब वाहवाही का दौर है,
हर तरफ भूखे नंगों की सेल्फियों का शोर है.
रोंगटे खड़े होते ये अब हाल देखकर,
यहाँ तो सब तरफ ही भेड़िये सब तरफ ही चोर हैं।
सरकार को तो मंजूर नही कोई उंगली उठाये,
कट्टरबाद के शामियाने में सब लोग आये.
बिक चुके सब खबरी अखबार,
कौन अब देश की हालत दिखाये।
राम-रहीम के गुण की तो कोई बात ही ना करता,
संघी जिहादी कह कह इंसान आपस में लड़ता.
धर्मों का तो सब एक ही हाल है,
लड़ा लड़ा आपस में हर कोई,इंसान के लिए इंसान
में ही नफरत है भरता।
गुणगान हो रहा अब सिर्फ पैसे वालों का,
देश हो रहा गुलाम बड़े कारोबारियों की चालों का.
मजबूर तो आज भी लुटता है फ़टे कपड़ों में,
तलाशता फिर रहा दर बदर जवाब खाली पेट
के सवालों का।
वैर विरोध के नारों का हर तरफ शोर क्यों,
ऊँची नीची जातों का फैला है रोग क्यों.
है नही यहाँ कोई अब भाईचारे की रसमें,
हर तरफ फैला है मतलब का ढोंग क्यों।
क्या कोई नही सुनता फरियाद गरीब की,
यहाँ करोड़ो में बनाते हैं एक याद अमीर की,
ये कौनसा धंधा है एक कुर्सी का,
लुटेरों ने मचाई तबाही पहन टोपी फ़क़ीर की।
अब तो बर्बादी का हर तरफ हो रहा नाच,
सब नोचते फिर रहे गरीबों का मास.
ये गुलामी कब तक रहेगी,
कब तक रहेगा ये ठोकरों का बनवास।
कोई तो ये इनके दर्द पहचाने,
भूखे बच्चों के हाथ थामे.
दवा पैसा ना सही,
कोई तो आये इनकी भूख मिटाने।
मेरे देश में पहले ऐसी तो न रीत थी,
दान सेवा की तो चलती आयी रीत थी.
इंक़लाब के नारे लगाते थे सब साथ मिलकर,
देश एकता की तो मिलती सब को सिख थी।
नाजाने किस ओर ये देश जा रहा है,
लगता है विनाश पास भुला रहा है.
दिखता नही वो अब प्यार भाव किसी में,
शायद अब इंसानियत की कश्ती शैतान चला रहा है
शायद अब इंसानियत की कश्ती शैतान चला रहा।।