~~◆◆{{◆◆शाख◆◆}}◆◆~
खिलौना सा बना फेंकता है हर कोई प्यार को,सच्ची चाहत वाला रोता है अक्सर रात को.
दिल उबाल कर गर्म पानी में दिखा दो,फिर भी नही समझता कोई दिल के एहसास को।
बातें तो बहुत मीठी मीठी होती हैं,थोड़ी सी अनबन में ही बोझ समझता है पक्के साथ को.
हर ऐरे गैरे से नही होती सांझा अपनी ज़िंदगी,ज़रा खयाल में रखो खुदा की मार को।
गुस्सा,ज़िद,अकड़ तो है दिमाग को खा जाती,ना पकड़ो गलत रस्ते की शाख को.
साथ निभाना भी तो है एक जिमेदारी,कुछ न मिलेगा बेहकावों में,छोड़ दो इस नासमझी की किताब को।