~~◆◆{{◆◆रो रहा मेरा भारत◆◆}}◆◆~~
फूलों के शहर में कांटो का व्यापार,लोकतंत्र के तख़्त पर चोरों की सरकार.
लग रहा चूना देश की तिजोरी को,धर्म के नाम पर फैलाया अंधकार।
गरीब की छाती पर रखी है कुर्सी,सत्ता किसी की भी हो,जनता बस लाचार।
अफसरशाही बन गया है एक धंधा,हक़ किस से मांगें सब तरफ भ्रष्टाचार।
मजबूर हुआ पढ़ा गरीब हाथ फैलाने को,मजहबी सियासत में तो लगता अमीर का भी जीना दुष्वार।
क्या करें किस से कहें इतनी बेईमानी,बिक चुका सवेरे शाम का सारा समाचार।
कहीं खो सी रही अपनी पहचान,कहीं पहचान बन गया सिर्फ आधार।
नौजवान तो गया मारा,कुछ ले डूबा आरक्षण,कुछ बिकती नौकरी सरेबाज़ार।
क्यों कहूँ कैसे कहूँ मैं खुश हूँ,रो रहा मेरा भारत बार बार।