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19 Jul 2020 · 1 min read

~~◆◆{{◆◆माक़ूल◆◆}}◆◆~~

एक फूल उठाया था हाथों में,नाजाने कब शूल बन गया.

हरदिन हरपल मासूम आँखों का,नाजाने कब रोना उसूल बन गया।

चाहतें तो बहुत ऊँची थी,नाजाने कब वक़्त आईने पर धूल बन गया.

याद करते करते कुछ हसीन लम्हें,खुद का वजूद ही एक भूल बन गया।

मनाते मनाते रह गया एक झूठ की हक़ीक़त,सच्चाई ने दी आवाज़ तो खुद का होना भी फ़िज़ूल बन गया.

कसूर की तो कोई बात नही,खेलने वाला भी तो मैं ही था,हार कर भी जीना माकूल बन गया।

Language: Hindi
8 Likes · 2 Comments · 354 Views
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