~~◆◆{{◆◆खिताब◆◆}}◆◆~~
हम तो खुद को भूल गए कहाँ कोई बात याद रखें,ज़माने ने जो नोचा है इतना कहाँ दर्द की आवाज़ रखें.
वो तो रूठ के बैठ गए अपनी ही सोच लेकर,हम कहाँ अपने आँसुओं का सैलाब रखें।
मेरे हाथों को तो समझता है वो कांटों की चुभन,कहाँ बताओ अब ये गुलाब रखें.
मत सतायो इतना अब तो बहुत जला लिया,कहाँ ये दिल पर जलती आग रखें।
तुमारी तो आदत सी होगयी है नाराज़ होकर चले जाना,हम किसके पास बेबसी का हिसाब रखें.
बदनाम होगया हूँ मैं सरेआम इश्क़ कर के,सोच में पड़ा हूँ कहाँ ये बदनामी का खिताब रखें।