~~◆◆{{सलामी}}◆◆~~
जिंदगी से जिंदगी की कहानी लिखने चला,मैं आँसुओं से दर्द को पानी लिखने चला.
टूटती रही हर उम्मीद अंदर ही अंदर,बिखरे हर ख्वाब को तस्वीर की जुबानी लिखने चला।
खो गया हूँ मैं अकेलेपन की भीड़ में,तन्हाई में भी छुप छुप कर तक़दीर की नीलामी लिखने चला।
बहका दिया मुझे अपनों ने ही हर कदम पर गले लगाकर,खुद पर ही हर सितम की मेहरबानी लिखने चला।
क्या दोष देना किसी और को मतलबी बनकर,खोलकर दिल अपना,अपनी मोहब्बत को कलम की दीवानी लिखने चला।
बहुत होगया अमन बंद पिंजरे के पंछी की तरह घुट घुट कर रोना,आज मैं भी वक़्त की राह पर हुनर की सलामी लिखने चला।