~~{{◆◆मक़बूलकर◆◆}}~~
सब ले गए लोग मुझसे लूटकर,कितने ही किस्से
बिखर गए मेरी कलम से टूटकर.
हर दर्द हर लम्हा मैंने बयां किया अपनी खामोशी
का,सब रह गया पीछे छूटकर।
कोई न समझा इस सियाही में अश्क़ों को,
सब उड़ चला वक़्त यादों को धूलकर।
इतना आसान नही सफर जिंदगी का जी पाना,
जीना पड़ता है फूलों को शूलकर।
जलती आग में उड़ना ही सच्चाई है मंज़िलों की,
मुस्कराना पड़ता है पीठ में लगे खंजरों
को भूलकर।
हिफाज़त हर वक़्त बंदूक से ही नही होती अपने
वतन की,कई बार कौम को जगाना होता है फाँसी
पे झूलकर।
सब्र में ही समझदारी है आज के वक़्त में,बनती बात
भी बिगड़ती है नज़रों से घूरकर।
कामयाबी का एक ही मंत्र है,मत सोचो,ले जाओ हर
अच्छे बुरे मौके को लूटकर।
मैंने हर एहसास जगाया है तन्हाईयों के तख़्त पर बैठकर,
आज लिखता हूँ हर ज़ख्म खुद में मक़बूलकर।