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14 May 2020 · 1 min read

◆◆कलम बागी◆◆

ये कैसी लापरवाही हो रही है,एक दूसरे को
नीचा गिरा कर वाहवाही हो रही है।

जा रहा देश किस और एक कुर्सी की खातिर,
इंसानियत की भारी तबाही हो रही है।

पहन रखी आज खादी अंग्रेजों मुगलों ने,झुठ ही
झुठ फैलाकर,जनहित की बर्बादी हो रही है.

भड़काया जा रहा मंदिर मस्जिदों के नाम पर,एक
वोट की खातिर ज़हरीली राजनीति फ़सादी हो
रही है।

हम भी नही किसी अब्दाली से कम कहीं तोड़ रहे
मंदिर कहीं मस्जिद,कुत्तों सी नोक झोंक की हमारी
नियत आदी हो रही है।

दर दर भटकता है मदयवर्ग यहाँ एक छोटे से काम के
लिए,आज़ाद देश में घूसखोरों की आबादी हो रही है।

हमको तो उलझा रखा वैर विरोध में इन्होंने,खुद इनके
सर पर,हर धर्म की टोपी आती जाती हो रही है।

गरीब की बेटी की इज्जत आबरू का नही कोई इंसाफ,
इनके महलों में धूम धाम से शादी हो रही है।

कब तक सहे एक मजबूर लेखक टूटती देश की एकता,
मजबूर अब कलम हमारी बागी हो रही है।

Language: Hindi
7 Likes · 6 Comments · 457 Views
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