◆◆एक कलम से पाकिस्तान एक कलम से हिंदुस्तान◆◆
नाजाने हिंदुस्तान किधर जा रहा है,नंगे पैर,पेट भूखा,
रेल की पटरियों पर दौड़ा जा रहा है.
लड़ रहा यहाँ मजदूर खुद के ही घर वापिस जाने को,
हो रही उसकी जलान्त,भगा भगा कर गलियों में,लठ
डंडों से तोड़ा जा रहा है।
हो रहे झूठे से दिखावे दान पुण्य की तस्वीरों और सरकारी
कागजों की भरपाई को,असल में तो सिर्फ सरकारी
मुलाजिमों का ही पेट भरा जा रहा है।
नही इंतज़ाम कोई ग़रीब की सुध का,शानदार महलों में बैठ,
भूलकर मैदानी हक़ीक़त,पतझड़ को ही हराभरा कहा जा
रहा है।
नही मिट रही मजहबी नफरत इस माहौल में भी,सियासती
रंग देकर एक महामारी का आरोप किसी एक खास धर्म
पर ही धरा जा रहा है।
कब तक जियें देख दम तोड़ते हिंदुस्तान को कुछ मतलबी
हाथों में,जब एक नौजवान को उसके ही देश में काफिर सा
माहौल दिया जा रहा है।
कैसे मानूँ मैं उनको लेखक उठाते है जो अपनी कलम से
किसी मजहब पर उँगली, शायद बिका है ज़मीर उनका
नफरत के हाथ,जो खुद को कवि या शायर कहला रहा है।
सबसे बड़ा फ़र्ज़ है एक लिखारी का ना झुके अपने धर्म के ठेकेदारों के आगे,तो क्या कारण है ये मेरे देश को एक कलम
से पाकिस्तान एक कलम से हिंदुस्तान लिखा जा रहा है।