◆विश्वासघात◆
आस्था की डोर से जब,
दिल के तार जूट गए ।
अरमाँ के पुष्प पल्लव,
अरुणिमा से फूट गए।
अबोध मन के भाव जब,
यकीं उरग पर सीत गए।
पीठ में लगे खंजर से,
तब भरोसे के रीत गए
करके विश्वासों के साथ घात,
तुमको लगता तुम जीत गए।
मेरी श्रद्धा बस हीन हुई,
दर्पण से फूट दो मीत गए।
तब मर्यादा तार तार हुई,
रिश्ते नाते सब टूट गए।
सब पाया तू कुछ खोया नहीं,
बस निष्ठा बगिया से लूट गए।
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