■ सूफ़ियाना ग़ज़ल-
#ग़ज़ल-
■ रोज़ छिड़ती है इक बहस मुझमें…!!
【प्रणय प्रभात】
★ मैं हूँ तुझमें या तू है बस मुझमें?
मैं क़फ़स में हूँ या क़फ़स मुझमें??
★ नूर, खुशबू, छुअन सभी उसकी।
जो समाती है हर नफ़स मुझमें।।
★ गर्म साँसों से ख़्वाहिशें दहकीं।
यूं तो संदल, गुलाब, ख़स मुझमें।।
★ ले गया मेरा सब चुरा कर वो।
रह गया जो कई बरस मुझमें।।
★ मैं ही मज़लूम, मुजरिमो-मुंसिफ़।
रोज़ छिड़ती है इक बहस मुझमें।।
★ कल यहीं महफिलें मचलती थीं।
आज सब कुछ तहस-नहस मुझमें।।
★ वो समझता है शिकस्ता लेकिन।
अब भी बाक़ी है कुछ अनस मुझमें।।
■प्रणय प्रभात■
श्योपुर (मध्यप्रदेश)