■ सियासी व्यंग्य-
#तीखी_नज़र…
■ कांग्रेस के “फाइव-जी”
【प्रणय प्रभात】
वफ़ादारी हो तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे साहब जैसी। जिन्होंने आज देश को “फाइव-जी” का “फुल-फॉर्म” दे दिया। वो भी टेक्निकल नहीं पॉलिटिकल यानि कांग्रेस की भाषा में।
“मौक़ा” था पार्टी के 85वें महाधिवेशन का। “मौसम” था चुनावी मधुमास का और “दस्तूर” वही चाटुकारिता का। सरज़मीन छत्तीसगढ़ के रायपुर की। अवसर अध्यक्षीय उद्बोधन के नाम पर पूरी “विरदावली” सुनाने का।
माननीय खड़गे साहब ने अपनी खड़कती हुई आवाज़ में कुल 5 नामों के साथ “जी” लगा कर अपनी कृतज्ञता का परिचय दिया। यह “पांच-जी” थे- नेहरू जी, इंदिरा जी, राजीव जी, सोनिया जी और राहुल जी।
सभी महान विभूतियां हैं। नाम के साथ “जी” लगाने में कोई बुराई नहीं। मगर सवाल यह है कि महात्मा गांधी, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, सुभाषचन्द्र बोस, वल्लभ भाई पटेल, मौलाना अबुल क़लाभ “आज़ाद” जैसे महापुरुषों के नाम के साथ “जी” क्यों नहीं? क्या यह एक ख़ानदान से बाहर के रोशनदानों के प्रति कृतघ्नता नहीं?
“दास्य-भाव” से बाहर निकल पाने की फुर्सत मिले, तो सोचिएगा ज़रूर मान्यवर! बंदा चिर-परिचित “हास्य-भाव” के साथ बस आपकी चूक याद दिला रहा है। साल चुनावी और माहौल तनावी है। सारा सियासी दंगल शब्दों की “धरपकड़” पर ही टिका हुआ है। इतना तो पता होगा ना आप को? काहे लगे हैं मिट्टी पलीद कराने में?? उस पद की तो आबरू रखिए थोड़ी बहुत, जो बेचारा पहले से “फुटबॉल” बना हुआ है। बुरा न मानें होली (पास ही) है। इत्ती सी “ठिठोली” तो बनती ही है।।
★संपादक★
न्यूज़ & व्यूज़
श्योपुर (मध्यप्रदेश)